Characteristics of Children with Developmental Disabilities
(विकासात्मक विकलांगता वाले बच्चों की विशेषताएं)
🧠 1.1 Definition of Developmental Disabilities, Disorders & Delays
इस क्षेत्र में छात्र अक्सर “Delay”, “Disability”, और “Disorder” शब्दों को एक ही समझ लेते हैं। एक विशेष शिक्षक के रूप में, आपको इनके बीच का सूक्ष्म अंतर (Technical Difference) पता होना चाहिए।
A. Developmental Delay (विकासात्मक देरी)
Concept: यह एक अस्थायी (Temporary) शब्द है। जब कोई बच्चा अपनी उम्र के अन्य बच्चों की तुलना में विकासात्मक मील के पत्थर (Developmental Milestones) तक नहीं पहुंच पाता है, तो उसे ‘डेवलपमेंटल डिले’ कहा जाता है।
- Global Developmental Delay (GDD): जब बच्चा 5 वर्ष से छोटा हो और वह दो या अधिक क्षेत्रों (जैसे चलना और बोलना) में पीछे हो।
- Key Point: देरी का मतलब है कि बच्चा “धीमा” है, लेकिन वह पकड़ सकता है (Catch up)। अगर सही समय पर हस्तक्षेप (Intervention) मिले, तो देरी खत्म हो सकती है।
B. Developmental Disability (DD – विकासात्मक विकलांगता)
Definition (USA – DD Act): यह एक गंभीर, दीर्घकालिक (Chronic) विकलांगता है जो:
- मानसिक या शारीरिक क्षति (या दोनों) के कारण होती है।
- 22 वर्ष की आयु से पहले प्रकट होती है।
- जीवन भर रहने की संभावना है (Lifelong)।
- दैनिक जीवन की कम से कम 3 प्रमुख गतिविधियों में पर्याप्त कार्यात्मक सीमाएं (Functional Limitations) पैदा करती है (जैसे स्व-देखभाल, भाषा, सीखना, गतिशीलता)।
Examples: Intellectual Disability (ID), Cerebral Palsy (CP), Autism (ASD)।
C. Neurodevelopmental Disorders (NDD – स्नायु-विकासात्मक विकार)
Definition: यह शब्द विशेष रूप से मस्तिष्क (Brain) और तंत्रिका तंत्र (Nervous System) के विकास में गड़बड़ी को दर्शाता है।
- यह शब्द DSM-5 (Diagnostic Manual) में उपयोग किया जाता है।
- इसमें समस्या “हार्डवेयर” (Brain structure) या “सॉफ्टवेयर” (Brain functioning) में होती है।
- Examples: ADHD, Autism, Learning Disability, Intellectual Disability।
D. Comparison Table (महत्वपूर्ण अंतर)
| विशेषता | Developmental Delay | Developmental Disability | Neurodevelopmental Disorder |
|---|---|---|---|
| समय | अक्सर 5 साल से छोटे बच्चों के लिए इस्तेमाल होता है। | जीवन भर (Lifelong) रहने वाली स्थिति। | मस्तिष्क के विकास से संबंधित। |
| प्रकृति | सुधार संभव है (Can overlap). | स्थायी स्थिति है। | जैविक/मस्तिष्क आधारित है। |
| उदाहरण | देर से बोलना (Late Talker). | CP, Autism, ID. | ADHD, SLD, ASD. |

⚠️ 1.2 Early Symptoms and Risk Factors (शुरुआती लक्षण और जोखिम कारक)
जल्दी पहचान के लिए “Red Flags” (खतरे के निशान) को जानना जरूरी है।
A. Early Symptoms (Red Flags)
अगर माता-पिता या शिक्षक को निम्नलिखित लक्षण दिखें, तो तुरंत विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए:
0-12 महीने (Infancy):
- 3 महीने तक गर्दन न संभालना (Head Holding)।
- 6 महीने तक न पलटना या न मुस्कुराना।
- आवाज सुनकर प्रतिक्रिया न देना (Hearing issue)।
- शरीर का बहुत ढीला (Floppy) या बहुत सख्त (Stiff) होना।
1-2 साल (Toddler):
- 12-15 महीने तक न चलना।
- 18 महीने तक एक भी शब्द न बोलना।
- नाम पुकारने पर न देखना (Autism red flag)।
- आंखों का संपर्क (Eye Contact) न बनाना।
2-5 साल (Preschool):
- अन्य बच्चों के साथ न खेलना।
- बार-बार गिरना या सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत।
- वाक्यों (Sentences) में बात न करना।
- अत्यधिक गुस्सा या खुद को चोट पहुँचाना (Behavioral issues)।
B. Risk Factors (जोखिम कारक)
जोखिम कारक वे स्थितियां हैं जो बच्चे में विकलांगता होने की संभावना को बढ़ाती हैं।
- Biological Risks (जैविक जोखिम):
- Genetic: डाउन सिंड्रोम, फ्र जाएल एक्स सिंड्रोम।
- Prenatal: माँ को संक्रमण (Rubella), नशा करना, कुपोषण।
- Perinatal: जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी (Birth Asphyxia), समय से पहले जन्म (Prematurity), कम वजन (LBW < 2.5kg)।
- Postnatal: दिमागी बुखार (Meningitis), सिर की चोट, पीलिया (Jaundice)।
- Environmental Risks (पर्यावरणीय जोखिम):
- Poverty: गरीबी के कारण कुपोषण और खराब स्वास्थ्य सेवाएं।
- Lack of Stimulation: बच्चे से बात न करना, उसे खेलने न देना (Neglect)।
- Toxic Stress: घर में हिंसा या तनावपूर्ण माहौल।
🔎 1.3 Early Identification and Referral (शीघ्र पहचान और संदर्भ)
A. The Process of Early Identification
- Observation (अवलोकन): माता-पिता और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बच्चे को देखते हैं। क्या वह अपनी उम्र के हिसाब से काम कर रहा है?
- Screening (छानबीन): मानकीकृत टूल्स का उपयोग (जैसे TDSC chart)। यह ‘हाँ’ या ‘ना’ में परिणाम देता है।
- Diagnosis (निदान): अगर स्क्रीनिंग में ‘जोखिम’ दिखता है, तो बच्चे को डॉक्टर/मनोवैज्ञानिक के पास भेजा जाता है।
B. Referral System (संदर्भ प्रणाली)
रेफरल का मतलब है सही समय पर सही विशेषज्ञ के पास भेजना।
- Primary Level: आंगनवाड़ी/आशा वर्कर $\rightarrow$ PHC (Primary Health Center) के डॉक्टर को भेजते हैं।
- Secondary Level: PHC डॉक्टर $\rightarrow$ DEIC (District Early Intervention Center) या जिला अस्पताल भेजते हैं।
- Tertiary Level: गंभीर मामलों के लिए मेडिकल कॉलेज या राष्ट्रीय संस्थान (जैसे NIEPID)।
Who to Refer to? (किसके पास भेजें?)
- बोलने में दिक्कत $\rightarrow$ Speech Therapist
- चलने में दिक्कत $\rightarrow$ Physiotherapist
- व्यवहार/सीखने में दिक्कत $\rightarrow$ Clinical Psychologist / Special Educator
- सुनने में दिक्कत $\rightarrow$ Audiologist
⭐ 1.4 Advantages of Early Detection and Intervention
“Prevention is better than cure, but Early Intervention is the best cure available for disabilities.”
- Maximizing Brain Potential:बच्चे का मस्तिष्क 0-3 वर्ष में सबसे तेजी से विकसित होता है (Neuroplasticity)। इस समय हस्तक्षेप करने से मस्तिष्क के ‘वायरिंग’ को सुधारा जा सकता है।
- Prevention of Secondary Disabilities: प्राथमिक विकलांगता (जैसे CP) को रोका नहीं जा सकता, लेकिन उसके कारण होने वाली द्वितीयक समस्याओं (जैसे हाथ-पैर टेढ़े होना – Contractures) को फिजियोथेरेपी से रोका जा सकता है।
- Reducing Developmental Gap: सामान्य बच्चे और विशेष बच्चे के बीच के अंतर को कम करना। उदाहरण के लिए, अगर बधिर बच्चे को 6 महीने की उम्र में हियरिंग एड मिल जाए, तो उसकी भाषा सामान्य बच्चों की तरह विकसित हो सकती है।
- Cost Effectiveness: बचपन में हस्तक्षेप पर खर्च किया गया पैसा भविष्य में विशेष देखभाल और बेरोजगारी भत्ते के बोझ को कम करता है।
- Family Empowerment: माता-पिता को हताशा से निकालकर उन्हें बच्चे का ‘को-थेरेपिस्ट’ बनाना। इससे परिवार का तनाव कम होता है।
🏫 1.5 Educational Avenues for Children with Developmental Disabilities
एक बार पहचान हो जाने के बाद, बच्चे को शिक्षा कैसे दी जाएगी? भारत में इसके लिए एक “कैस्केड सिस्टम” (Cascade System) उपलब्ध है।
1. Home-Based Education (गृह-आधारित शिक्षा)
- For whom: गंभीर और अति गंभीर (Severe/Profound) विकलांगता वाले बच्चे या जो चिकित्सकीय रूप से नाजुक हैं।
- Model: विशेष शिक्षक घर जाकर माता-पिता को प्रशिक्षण देता है (जैसे Portage Model)।
- Goal: दैनिक जीवन कौशल (ADL) और बुनियादी संचार।
2. Early Intervention Centers / Pre-schools
- For whom: 0-6 वर्ष के बच्चे।
- Focus: स्कूल तत्परता (School Readiness) कौशल – बैठना, ध्यान देना, पेंसिल पकड़ना।
- Example: DEIC, आंगनवाड़ी (अब समावेशी हो रही हैं)।
3. Special Schools (विशेष विद्यालय)
- For whom: मध्यम से गंभीर (Moderate to Severe) विकलांगता वाले बच्चे जिन्हें गहन सहायता की जरूरत है।
- Features: विशेष शिक्षक, कम छात्र-शिक्षक अनुपात (1:8), थेरेपी सुविधाएं।
- Curriculum: कार्यात्मक पाठ्यक्रम (Functional Curriculum) – पैसे गिनना, समय देखना, खुद की देखभाल।
4. Inclusive Schools (समावेशी विद्यालय) – The Ultimate Goal
- RPWD Act 2016 और NEP 2020 के अनुसार, यह सबसे पसंदीदा विकल्प है।
- Concept: विशेष जरूरतों वाले बच्चे सामान्य बच्चों के साथ सामान्य स्कूलों में पढ़ते हैं।
- Support:
- Resource Room: जहाँ बच्चा दिन का कुछ समय विशेष शिक्षक से मदद लेने जाता है।
- Accommodations: परीक्षा में अतिरिक्त समय, लेखक (Scribe), आसान पाठ्यक्रम।
5. Vocational Training Centers (VTC)
- For whom: 18 वर्ष से ऊपर के वयस्क।
- Goal: आर्थिक स्वतंत्रता। मोमबत्ती बनाना, फाइल बनाना, डाटा एंट्री, बेकरी आदि का प्रशिक्षण।
6. Open Schooling (NIOS)
- उन बच्चों के लिए जो नियमित स्कूल नहीं जा सकते। इसमें विषयों को चुनने की आजादी और अपनी गति से सीखने की सुविधा होती है (OBE – Open Basic Education)।

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