National Trust Act of 1999: विकलांगों को सशक्तिकरण

National Trust Act : 1999

राष्ट्रीय ट्रस्ट अधिनियम 1999, भारत में विकलांगों को सशक्तिकरण के लक्ष्य से एक महत्वपूर्ण कदम है। 30 दिसंबर, 1999 को पारित इस अधिनियम ने ऑटिज़्म, सिबरियल पॉल्सी, मानसिक मंदता, और बहु विकलांगताओं वाले व्यक्तियों के कल्याण और सुगमता की देखभाल के लिए राष्ट्रीय ट्रस्ट की स्थापना की, जिससे उनकी देखभाल और कल्याण की देखरेख के लिए एक समर्पित निकाय की आवश्यकता को मान्यता प्राप्त हुई।

राष्ट्रीय ट्रस्ट अधिनियम का मुख्य उद्देश्य विकलांगों को स्वतंत्र रूप से जीने और मुख्य समाज का हिस्सा बनने की संभावना प्रदान करना है। यह अधिनियम उनकी देखभाल, सुरक्षा, और पुनर्वास के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है। इसका उद्देश्य उनकी शिक्षा, रोजगार और सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदारी के अवसरों को बढ़ावा देना भी है।

राष्ट्रीय ट्रस्ट अधिनियम, 1999 के महत्वपूर्ण प्रावधान:

  1. राष्ट्रीय ट्रस्ट की स्थापना: अधिनियम भारतीय समाज के मंत्रालय के तहत एक कानूनी निकाय, राष्ट्रीय ट्रस्ट, की स्थापना करता है। राष्ट्रीय ट्रस्ट को अधिनियम की प्रावधानों को कार्यान्वित करने और विकलांगों के कल्याण के लिए नीतियों और कार्यक्रमों का निर्धारण करने का जिम्मेदारी होती है।
  2. ट्रस्टी बोर्ड: अधिनियम द्वारा एक ट्रस्टी बोर्ड की स्थापना की गई है जो राष्ट्रीय ट्रस्ट के काम का प्रबंधन करता है। बोर्ड में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, और अन्य सदस्यों के अलावा, विकलांगों के प्रतिनिधि और क्षेत्र के विशेषज्ञों के प्रतिनिधित्व शामिल हैं।
  3. राष्ट्रीय ट्रस्ट के कार्य: राष्ट्रीय ट्रस्ट को कई कार्यों का जिम्मेदारी दी गई है, जैसे कि:
  • विकलांगों के कल्याण के लिए काम करने वाली संगठनों को पंजीकृत करना।
  • विकलांगों की देखभाल, सुरक्षा, और पुनर्वास के लिए कार्यक्रम विकसित और कार्यान्वित करना।
  • विकलांगों के कल्याण के लिए पंजीकृत संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
  • विकलांगों के अधिकारों और आवश्यकताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
  1. विकलांगों की सुरक्षा: अधिनियम विकलांगों की असुरक्षा, उपेक्षा, और शोषण से बचाव के लिए प्रावधान प्रदान करता है। यह राष्ट्रीय ट्रस्ट को उनकी सुरक्षा और पुनर्वास के लिए आवश्यक कदम उठाने की अधिकारी बनाता है।
  2. कानूनी प्रशासन: अधिनियम में एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि विकलांग व्यक्तियों के लिए कानूनी प्रशासन का प्रावधान है जो स्वयं की देखभाल नहीं कर सकते। राष्ट्रीय ट्रस्ट ऐसे व्यक्तियों के लिए संरक्षण और भलाई के लिए अभिभावकों की नियुक्ति कर सकता है।
  3. विकलांगों के अधिकार: अधिनियम विकलांगों के समानता, असमानता से मुक्ति, और समाज में पूर्ण और प्रभावी भागीदारी के अधिकारों पर जोर देता है। यह उनकी पूर्ण और प्रभावी भागीदारी को बाधित करने वाली बाधाओं को हटाने का प्रयास करता है।
  4. शिक्षा और रोजगार के अवसर: अधिनियम विकलांगों के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देता है। यह सुनिश्चित करता है कि उनके लिए शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण तक पहुंच हो, साथ ही उन्हें कामगार में शामिल किया जाए।
  5. संस्थानों की मान्यता: अधिनियम संस्थानों और संगठनों की मान्यता प्रदान करता है जो विकलांगों के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं। इसने उनके संचालन के लिए मानकों का संचालन करने का निर्धारण किया है और सुनिश्चित किया है कि वे अधिनियम की प्रावधानों का पालन करें।

राष्ट्रीय ट्रस्ट अधिनियम 1999, भारत में विकलांगों को सशक्तिकरण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह उनकी देखभाल, सुरक्षा, और पुनर्वास के लिए एक समग्र कानूनी ढांचा प्रदान करता है, और उनके अधिकारों और समाज में समावेश को बढ़ावा देता है। उनकी स्वतंत्रता और भागीदारी सुनिश्चित करके, यह अधिनियम सभी के लिए एक समावेशी और समान भारतीय समाज का निर्माण में सहायक होता है।

राष्ट्रीय ट्रस्ट अधिनियम के उद्देश्य:

  1. विकलांगों के समर्थन, सुरक्षा, और समाज में समावेश को बढ़ावा देना।
  2. उनके स्वतंत्र जीवन को सुनिश्चित करना।
  3. उनकी समाजिक और आर्थिक विकलांगता को कम करना और उन्हें समर्थन प्रदान करना।
  4. उनकी शिक्षा, विकास, और स्वभाविक स्थिति को सुधारना।
  5. उनकी सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचितता को कम करना और उन्हें मुख्यस्थल के रूप में समाज में शामिल करना।
  6. उन्हें उनके विकलांगता से संबंधित क्षेत्रों में कौशल प्रशिक्षण और उत्थान के लिए संबोधित करना।
  7. उनके लिए विशेष समर्थन और उनकी जरूरतों के अनुसार सेवाएं प्रदान करना।

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