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SPECIAL EDUCATION
"Unlocking potential through tailored education: Special education embraces individual differences, disabilities, and special needs, ensuring every student thrives."
विशेष शिक्षा (Special Education)शिक्षा शास्त्र की एक ऐसी शाखा है जिसके अंतर्गत उन बच्चों को शिक्षा दी जाती है जो सामान्य बच्चों से शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक विशेषताओं में थोड़े अलग होते हैं। विशेष बच्चे (Special Child) कहने का तात्पर्य यह हुआ की ऐसे बच्चें या तो सामान्य बच्चों से अधिक प्रतिभाशाली (Brilliant) होते हैं या उनसे काफी कम। ऐसे बच्चों की आवश्यकतायें भी विशिष्ट (Specific) होती है। इसलिए वह विशेष आवश्यकता वाले बच्चे कहलाते हैं। ऐसे बच्चे अपनी सहायता स्वयं नहीं कर पाते हैं। अतः इनको विशिष्ट शिक्षा प्रदान कर इनकी सहायता की जाती है। विशिष्ट शिक्षा का प्रयोग सामान्यतः उन बच्चों के लिए किया जाता है जो किसी विकलांगता से ग्रस्त होते हैं जैसे – अंधापन, बहरापन, मंदबुद्धि या शारीरिक विकलांग आदि। वर्तमान में ऐसे बच्चों को दिव्यांग कहकर सम्बोधित किया जाता है।
- विशेष शिक्षा विशेष बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करती है, चाहे वह बच्चा प्रतिभाशाली हो या पिछड़ा।
- विशिष्ट शिक्षा विशेष बच्चों से समाज के साथ समायोजन में सहायता करती है।
- विशेष शिक्षा (Special Education) विशिष्ट बालकों (Special Child) को आत्मनिर्भर बनाती है।
- विशेष शिक्षा प्रदान करने के लिए विशेष शिक्षा सामग्री, विशेष पाठ्यक्रम व विशेष प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापकों की आवश्यकता होती है।
- यह शिक्षा बालकों की क्षमताओं योग्यताओं रुचियां को ध्यान में रखकर दी जाती है।
- प्रत्येक नागरिक को सामान्य शिक्षा लेने का अधिकार है उसी प्रकार दिव्यांग बालकों को विशेष शिक्षा का अधिकार है।
- विशिष्ट शिक्षा दिव्यांग बच्चों के हर पक्ष का विकास करती है जैसे – शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक।
- विशेष शिक्षा दिव्यांग बालकों के लिए शिक्षण विधियों पर जोर देती है।
- वर्ग-कक्षा में दिव्यांग बच्चों के शिक्षण अधिगम एवं कौशल का आकलन करना।
- नियमित कक्षाओं में दिव्यांग बच्चों के सुव्यवस्थित रूप से पढ़ने-लिखने संबंधी भौतिक एवं अकादमिक अनुकूलन की पहचान करना।
- दिव्यांग स्कूली बच्चों की शक्तियों एवं कमजोरियों की पहचान करना।
- दिव्यांग बालकों को नियमित कक्षाओं में भ्रमण करने के अवसर मुहैया कराना।
- बच्चों को मुख्य धारा में लाने वाली गतिविधियों की योजना निर्माण में सहभागी बनाना।
- अभिभावक एवं सामुदायिक आरियेन्टेशन कार्यक्रमों में भाग लेना ।
- पुनर्वास विशेषज्ञों एवं स्कूल कर्मचारियों के बीच पारमशत्मिक संबंध कायम करना ।
- विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को मुख्य धारा की कक्षा में दाखिले के लिए कार्यक्रमों का निर्माण करना।
- सामान्य कक्षाओं के शिक्षकों और छात्रों को दिव्यांग बच्चों की देखभाल के लिए मानसिक तौर पर तैयार करना ।
- दिव्यांग बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं के मापने के लिए सूचनाओं का संग्रह करना ।
- प्रत्येक दिव्यांग बच्चे की वर्तमान क्रियाकलापों का आकलन करना ।
- दिव्यांग बच्चों का शैक्षिक लक्ष्यों का निर्धारण करना।
- बच्चों के लक्ष्य के निर्धारण में माता-पिता की भागीदारी सुनिश्चित करना।
- दिव्यांग बच्चों के लिए शिक्षण-अधिगम सामग्रियों का निर्माण करना।
- गतिविधि आधारित शिक्षण कार्यक्रमों का निर्माण करना।
- वैकल्पिक शैक्षिक रणनीतियों का डिजाइन करना।