भारत में दिव्यांगता को केवल एक स्वास्थ्य समस्या के रूप में नहीं, बल्कि एक सामाजिक और आर्थिक मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिए। दिव्यांगजन, जो समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, अक्सर रोजगार के क्षेत्र में समान अवसरों से वंचित रहते हैं। रोजगार में उनकी भागीदारी बढ़ाना न केवल उनके जीवन को बेहतर बनाता है, बल्कि देश के समग्र विकास में भी योगदान देता है।
भारत में दिव्यांगता और रोजगार की स्थिति
भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 2.68 करोड़ लोग दिव्यांगता से प्रभावित हैं। हालांकि, इनकी रोजगार में भागीदारी बहुत कम है। दिव्यांगजनों के लिए रोजगार न केवल आर्थिक स्वतंत्रता का साधन है, बल्कि यह उन्हें समाज में गरिमा और आत्मविश्वास के साथ जीने का अवसर भी प्रदान करता है।
दिव्यांगजनों की रोजगार भागीदारी के प्रमुख पहलू
- ग्रामीण क्षेत्रों में दिव्यांगजनों की रोजगार दर शहरी क्षेत्रों की तुलना में बेहतर है, लेकिन यह मुख्य रूप से असंगठित क्षेत्र तक सीमित है।
- संगठित और औपचारिक क्षेत्रों में दिव्यांगजनों को रोजगार के अवसर बहुत कम मिलते हैं।
- महिला दिव्यांगजनों को रोजगार पाने में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
मुख्य चुनौतियां
- शिक्षा और कौशल विकास की कमी: दिव्यांगजनों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और प्रशिक्षण का अभाव है, जो उन्हें रोजगार के लिए तैयार कर सके।
- सुलभता की कमी: कार्यालय और कार्यस्थल अक्सर दिव्यांगजनों के लिए अनुकूल नहीं होते।
- सामाजिक पूर्वाग्रह: दिव्यांगजनों की क्षमताओं को लेकर नियोक्ताओं में जागरूकता और संवेदनशीलता का अभाव है।
- सरकारी नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं: दिव्यांगजनों के लिए आरक्षण और रोजगार योजनाएं लागू तो हैं, लेकिन इनका प्रभाव सीमित है।
- डिजिटल कौशल का अभाव: आज के डिजिटल युग में कई नौकरियां तकनीकी ज्ञान की मांग करती हैं, जो दिव्यांगजनों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
भारत सरकार ने दिव्यांगजनों के रोजगार में सुधार के लिए कई योजनाएं लागू की हैं:
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016: इसमें सरकारी नौकरियों और शिक्षा में दिव्यांगजनों के लिए आरक्षण का प्रावधान है।
- सुगम्य भारत अभियान: सार्वजनिक स्थानों और कार्यालयों को दिव्यांगजनों के लिए सुलभ बनाने का प्रयास।
- राष्ट्रीय दिव्यांग वित्त और विकास निगम (NHFDC): दिव्यांगजनों के लिए स्व-रोजगार को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता।
- कौशल विकास कार्यक्रम: विशेष प्रशिक्षण केंद्र और कार्यक्रम दिव्यांगजनों को रोजगार के लिए तैयार करने में मदद करते हैं।
निजी क्षेत्र की भूमिका
- कई कंपनियां अब दिव्यांगजनों को रोजगार देने के लिए विशेष पहल कर रही हैं।
- वर्चुअल कार्य और घर से काम करने के विकल्प ने दिव्यांगजनों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाए हैं।
- CSR (कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व) के तहत दिव्यांगजनों को रोजगार देने की दिशा में निजी क्षेत्र सक्रिय हो रहा है।
समाधान और सुझाव
- शिक्षा और कौशल विकास: दिव्यांगजनों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और उनके कौशल के अनुसार प्रशिक्षण प्रदान करना।
- सुलभता में सुधार: कार्यस्थलों, तकनीकी प्लेटफार्मों और परिवहन सुविधाओं को दिव्यांगजनों के अनुकूल बनाना।
- सामाजिक जागरूकता: नियोक्ताओं और समाज में दिव्यांगजनों की क्षमताओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना।
- सरकारी नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन: आरक्षण और रोजगार योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करना।
- तकनीकी नवाचार: सहायक उपकरण और तकनीकी समाधान दिव्यांगजनों को कार्यस्थलों में अधिक सक्षम बना सकते हैं।
निष्कर्ष
दिव्यांगता और रोजगार का मुद्दा केवल दिव्यांगजनों का नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज की जिम्मेदारी है। दिव्यांगजन में अद्वितीय क्षमताएं और प्रतिभाएं होती हैं, जो सही अवसर मिलने पर समाज और अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण योगदान कर सकती हैं।
समाज, सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर ऐसा वातावरण बनाना चाहिए, जहां दिव्यांगजन समान अवसरों के साथ रोजगार पा सकें और गरिमा के साथ अपना जीवन जी सकें। समावेशी विकास की दिशा में यह एक बड़ा कदम होगा।