बौद्धिक अक्षमता, परिभाषा ,कारण, वर्गीकरण ,लक्षण

बौद्धिक अक्षमता, जिसे पहले मानसिक मंदता कहा जाता था, औसत से कम बुद्धि या मानसिक क्षमता और रोजमर्रा की जिंदगी के सामान्य विकास के लिए आवश्यक कौशल की कमी होती है।

बौद्धिक अक्षमता वाले लोग आमतौर पर नए कौशल हासिल कर सकते हैं, लेकिन दूसरों की तुलना में धीरे-धीरे।

बौद्धिक अक्षमता के विभिन्न स्तर होते हैं, हल्के से लेकर गहन तक।

बौद्धिक अक्षमता क्या है?

बौद्धिक अक्षमता से पीड़ित लोगों में दो क्षेत्रों में कमियां होती हैं:

1.बौद्धिक कार्यक्षमता – किसी व्यक्ति के सीखने, प्रेरित होने, निर्णय लेने और समस्याओं को हल करने की क्षमता को दर्शाता है। I.Q को एक विशेष परीक्षण द्वारा मापा जाता है। औसत बुद्धि वाले व्यक्ति के लिए स्कोर 100 है, जबकि बौद्धिक अक्षमता से पीड़ित व्यक्ति के मामले में यह 70 से नीचे होता है।

2.अनुकूली व्यवहार – ये रोजमर्रा की जिंदगी के सामान्य विकास के लिए आवश्यक कौशल हैं, जैसे प्रभावी ढंग से संवाद करने की क्षमता, दूसरों के साथ बातचीत करने और स्वयं की देखभाल करने की क्षमता।

एक बच्चे की अनुकूली क्षमताओं का मूल्यांकन करने के लिए, विशेषज्ञ उनकी तुलना उसी उम्र के अन्य बच्चों से करते है। व्यवहार को देखा जाएगा जैसे कि बच्चे की खुद से भोजन करने की क्षमता, खुद को तैयार करने के लिए, बच्चा दूसरों के साथ संवाद करने में कितना सक्षम है और यह समझता है कि उसे क्या प्रेषित किया जाता है, जिस तरह से वह परिवार, दोस्तों और उसी उम्र के अन्य बच्चों के साथ बातचीत करता है। .

बौद्धिक अक्षमता की परिभाषा

जे.डी. पेज (J.D. Page, 1976) के अनुसार :- ‘‘मानसिक न्यूनता या अक्षमता व्यक्ति में जन्म के समय या बचपन के प्रारंभ के वर्षों में पायी जाने वाली सामान्य से कम मानसिक विकास की ऐसी अवस्था है जो उसमें बुद्धि सम्बन्धी कमी तथा सामाजिक अक्षमता के लिए उत्तरदायी होती है।’’

ब्रिटिश मेण्टल डैफिशियेन्सी एक्ट के अनुसार :- ‘‘बौद्धिक अक्षमता 18 वर्ष से पहले आनुवांशिक करणों की वजह से अथवा बीमारी या चोट के कारण पैदा हुई एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति के मस्तिष्क का विकास या तो रूक जाता है या उसमें पूर्णता नहीं आ पाती।’’

क्रो और क्रो के शब्दों में :- ‘‘जिन बालकों की बुद्धिलब्धि 70 से कम होती है, उन्हें बौद्धिक अक्षम बालक कहते हैं।’’

बच्चों में बौद्धिक अक्षमता के लक्षण

बच्चों में बौद्धिक अक्षमता के कई अलग-अलग लक्षण होते हैं। वे बचपन के दौरान प्रकट हो सकते हैं, हालांकि कुछ मामलों में वे तब दिखाई देते हैं जब बच्चे स्कूल की उम्र तक पहुंचते हैं।

बौद्धिक अक्षमता की गंभीरता एक बच्चे से दूसरे बच्चे में भिन्न होती है। बौद्धिक अक्षमता की कुछ सबसे सामान्य अभिव्यक्तियाँ हैं:

– चलने में देरी, चढ़ने में कठिनाई;

– विलंबित भाषण या भाषा की कठिनाइयाँ;

– कठिनाई से कौशल प्राप्त करना जैसे कि टॉयलेट का उपयोग करना, कपड़े पहनना या स्वतंत्र रूप से भोजन करना;

– स्मृति समस्याएं,याद करना;

– कार्यों और परिणामों के बीच संबंध बनाने में असमर्थता;

– व्यवहार संबंधी विकार, जैसे हिस्टीरिया;

– समस्याओं को हल करने या तार्किक रूप से सोचने में कठिनाइयाँ।

गंभीर या गहन बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों को अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं जैसे आक्षेप, मानसिक विकार, मोटर अक्षमता और दृष्टि या सुनने की समस्याएं।

बौद्धिक अक्षमता के कारण

कोई भी चीज जो मस्तिष्क के सामान्य विकास में बाधा डालती है, वह बौद्धिक अक्षमता का कारण बन सकती है। हालांकि, केवल एक तिहाई मामलों में ही बौद्धिक अक्षमता के कारण की पहचान की जा सकती है।बौद्धिक अक्षमता के सबसे आम कारण हैं:

बौद्धिक अक्षमता कई कारणों से होता है। इन्हें प्रमुखत आनुवांशिक कारण, जन्म से पूर्व कारण, जन्म के समय के कारण, जन्म के पश्चात के कारणों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

आनुवांशिक कारण

आनुवांशिक विकार माँ बाप से संचारित जीन में न्यूनता के परिणाम स्वरूप संतान में मानसिक मंदन वाली कतिपय स्थितियाँ हो सकती है। हो सकता है कि, अभिभावक में वह दोष न हो या फिर अगर हो भी तो संभव है कि, मानसिक मदन की दशा उनमें दिखाई न दें। अधिकांशत आनुवांशिक विकारों को पहचाना गया है। सबसे प्रचलित आनुवंशिक स्थितियों में डाउन सिंड्रोम, क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम, fragile X syndrome (लड़कों में आम), न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस, जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म, विलियम्स सिंड्रोम, फेनिलकेटोनुरिया (पीकेयू), और प्रेडर-विली सिंड्रोम शामिल हैं।

जन्म से पूर्व कारण

गुणसूत्र संबंधी विकार प्रत्येक मानव कोशिका में 23 युग्म गुणसूत्र होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति आधे गुणसूत्र माता से और आधे गुणसूत्र पिता से प्राप्त करता है। गुणसूत्रों में त्रुटि से चिकित्सापरक समस्याओं की स्थिति उत्पन्न होती है और इन स्थितियों में से अधिकांश स्थितियां मानसिक मदन का कारण होती है। गुणसूत्रों की संख्या में त्रुटि बहुत अधिक या बहुत कम भी हो सकती है या त्रुटि के फलस्वरूप उत्पन्न सामान्य स्थिति को डाउन सिन्ड्रोम कहा जाता है। ऐसी स्थिति में सामान्यतया २१ संख्या पर एक अतिरिक्त गुणसूत्र होता है। इसके कारण डाउन सिन्ड्रोम व्यक्तियों में दूर दूर स्थित तिरछी आंखे, दबा हुआ नासादण्ड, खुला मुंह, मोटी जीभ, नीचे की तरफ झुके छोटे कान, छोटे अंग, छोटी अंगुलियों, विशिष्ट करतल सिकुड़न, आदि जैसे शारीरिक लक्षण दिखाई देते हैं।

माता में संक्रमण, विशेषतः गर्भावस्था के पहले तीन महीनों के दौरान होने पर, भ्रूण के मस्तिष्क के विकास को क्षति पहुँचा सकते हैं कुछ संक्रमण, जिनसे भ्रूण प्रभावित होता है, रुबेला जर्मन मीजल), हर्पीज और साईटोमिगेली, अंतस्थ पिंड रोग, टोक्सोप्लासमोसिस, सिफलिस और ट्यूरक्लोसिस ।

माता को मधुमेह और उच्च रक्तचाप, गुर्दे की चिरकालिक समस्याएँ कुपोषण बढ़ते हुए भ्रूम को क्षति पहुँचा सकती है। माता में अल्पक्रियता की स्थिति होने से बच्चा बीना पैदा हो सकता है। माता में थायराइड ग्रंथि के बढ़ने से (अल्पक्रियता) बढ़ते हुए भ्रूण की केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र में दोष उत्पन्न हो सकते हैं जिसके फलस्वरूप मानसिक मंदन हो सकती है।

गर्भावस्था प्रारंभिक महीने में एक्सरे करवाना, हानिकारक दवाईयाँ लेना, विशेषतः जिन दवाईयों का उपयोग कैंसर के निदान के लिए किया जाता है. कुछ आपस्माररोधी दवाईयाँ लेने और हार्मोन लेने से बढ़ते हुए भ्रूण को क्षति पहुँच सकती है माता को दौरे, जिनका इलाज नहीं किया जा सकता, और गिरने से दुर्घटना, जिससे पेट में घोट लगी हो, से बढ़ते हुए भ्रूण को क्षति पहुँच सकती है और यह मानसिक मंदन का कारण हो सकती है।

जन्म के समय के कारण

  • विभिन्न कारणों से समयपूर्व जन्म (28 सप्ताह और 34 सप्ताह के बीच जन्म के कारण)
  • कम वजन वाला शिशु (2 कि०ग्रा० से कम)
  • जन्म के तत्काल बाद सांस न लेना (यदि मस्तिष्क को 4 या 5 मिनट के लिए आक्सीजन नहीं दी जाती है तो उसकी क्षति हो सकती हैं)।
  • भ्रूण के सिर और जनन मार्ग के बीच असंगति या दीर्घ प्रसव अथवा अनुपयुक्त उपकरणों के प्रयोग द्वारा प्रसव के फलस्वरूप अतिरिक्त जैसे कारणों के कारण नवजात के सिर में चोट ।
  • गर्भाशय में भ्रूण की असामान्य स्थिति
  • भ्रूण के चारों और नाभिनाल का अत्यधिक कुण्डलीकरण ।
  • माता में उच्च रक्तचाप और दौरा पड़ने के कारण गर्भावस्था में जीव विषरक्तता।
  • नवजात शिशु के सिर में विभिन्न कारणों से रक्तस्राव।
  • नवजात शिशु को विभिन्न कारणों से तीव्र पीलिया।
  • माता को दी गई दवाईयाँ जैसे बेहोशी की और पीडानाशक दवाईयाँ।

जन्म के पश्चात के कारण

बच्चे में कुपोषण जब स्नायु कोशिकाओं (Nerve Cells) का गुणन अत्यधिक सक्रिय होता है तब बच्चे का दिमाग गर्भायु के 12-18 सत्ताह के दौरान और बच्चे के पैदा होने से 2 वर्ष का होने तक कुपोषण के लिए नाजुक है। इस अवधि के दौरान अपर्याप्त प्रोटीन और कार्बोहाईड्रेट लेना बौद्धिक अक्षमता का कारण हो सकता है।

  • बच्चे में संक्रमण जैसे तानिकशोथ (मेनिन्जाइटिस) या मस्तिष्क ज्वर (एन्सिफेलाइटिस) बौद्धिक अक्षमता का कारण हो सकता है।
  • बच्चे को बार-बार दौरा पड़ने से दिमाग क्षतिग्रस्त हो सकता है और बौद्धिक अक्षमता का कारण हो सकता है।
  • नवजात शिशु में पीलिया होने से।
  • दुर्घटना या गिरने से मस्तिष्क में कोई चोट लगना बौद्धिक अक्षमता का कारण हो सकता है।

स्रोतः बौद्धिक मंदन मनोवैज्ञानिकों के लिए नियम पुस्तिका, NIMH

बौद्धिक अक्षमता के प्रकार

आईक्यू के स्तर के आधार पर, बौद्धिक अक्षमता का वर्गीकरण:

  • हल्की बौद्धिक अक्षमता (50 और 70 के बीच आईक्यू)
  • मध्यम बौद्धिक अक्षमता (35 और 49 के बीच आईक्यू)
  • गंभीर बौद्धिक अक्षमता (20 और 34 के बीच आईक्यू)
  • गहन बौद्धिक अक्षमता (20 से नीचे बुद्धि)

हल्की बौद्धिक अक्षमता (Mild intellectual disability): आईक्यू 50 से 69 होता हैं, ऐसे बच्चों के गामक कौशलो, सामाजिक कौशलों एवं कार्यात्मक पठन-पाठन में प्रशिक्षित किया जा सकता है। इसके साथ ही इनको स्वरोजगार हेतु भी तैयार किया जा सकता है परन्तु इसके लिए इनको व्यापक निर्देशन एवं पर्यवेक्षण की आवश्यकता रहती है

मध्यम बौद्धिक अक्षमता( Moderate intellectual disability): आईक्यू 35 से 49  होता हैं, ऐसे बच्चों को दैनिक क्रिया-कलापों का प्रशिक्षण के साथ-साथ सामाजिक एवं व्यवसायिक कौशलों में प्रशिक्षित किया जा सकता है।

गंभीर बौद्धिक अक्षमता (Severe intellectual disability): आईक्यू 20 से 34 बीच होता ऐसे बच्चों को उनकी दैनिक जीवन की आवश्यकताओं हेतु निरन्तर मदद की जरूरत होती है। ऐसे बच्चों को गहन प्रशिक्षण द्वारा कुछ सामान्य सकल गामक क्रियाओं में प्रशिक्षित कर स्वयं से किये जाने वाले कार्यों को सिखाया जा सकता है।

गहन बौद्धिक अक्षमता(profound intellectual disability): इस श्रेणी के अन्तर्गत 20 से कम आईक्यू वाले बच्चों को रखा जाता है। इन बालकों को निरन्तर दूसरों के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है। अतः इनकी प्रत्येक आवश्यकताएं दूसरों की मदद से ही पूरी होती है।

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